घर | GHAR

घर | GHAR


फिर उड़ चला, छोड़ कर ये घोंसला l

 संग अनंत उम्मीदें, और इक होंसला ll


बदलती रही मंजिल ए सफर हर बार l

लेकिन शुरू तुझसे, हर सफर हर बार ll

Ajit singh Rathore

रुखसत तेरी चौखट से, मुश्किल क्यूं बता जरा l

अलहदगी के वक्त मुस्कराना, इतना मुश्किल क्यूं बता जरा ll


ज़िंदगी यूँ ,हुई बसर तन्हा l

क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा ll


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सिलसिले तुझसे जुदाई के, आयेंगे और जायेंगे l

न हो उदास तूं, कुछ ही दिन बाद फिर लौट के आयेंगे ll

                                                        @ अजीत सिह राठौड़


कविता ( घर ) की रचना माँ भारती के सपूत अजीत सिह राठौड़ ने की है , जो भारतीय सेना मे तैनात गरुड कमाण्डो है | अजीत सिह राठौड़ जैसलमेर जिले के गुड्डी (पोकरण ) गाँव के रहने वाले है | जो पिता तनेरावसिह जी राठौड़ के सपने को पूरा कर रहे है माँ भारती की रक्षा मे |

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