महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का इतिहास | History of Chetak, the horse of Maharana Pratap

महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का इतिहास | History of Chetak, the horse of Maharana Pratap


राजपूताने का इतिहास इतना गौरवशाली , वीरता तथा पराक्रम से सुसज्जित है कि इस मिट्टी के कण कण में वीर योद्धाओं की रण कथाओं का वर्णन मिलता है आज के लेख में हम मेवाड़ के महाराणा प्रताप के घोड़े से जुड़े इतिहास को जानेंगे और हल्दीघाटी के युद्ध में चेतक की निर्णायक भूमिका का उल्लेख भी करेंगे इतिहास हमेशा वीर योद्धाओं का लिखा जाता है परंतु इतिहास में चेतक जो महाराणा प्रताप का घोड़ा था जिसने अपनी वीरता दिखा कर विभिन्न इतिहासकारों कवियों तथा विभिन्न साहित्यकारों को अपनी तरफ आकर्षित किया और कलम के कलम गारो को कलम चलाने के लिए मजबूर कर दिया और कलम गारो की कलम ने चेतक को इतिहास में अमर कर दिया जब जब इतिहास में महाराणा प्रताप को याद किया जाता है तब तब चेतक की पराक्रम वीरता का उल्लेख भी किया जाता है

महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का इतिहास
स्टैच्यू : चेतक असवार महाराणा प्रताप


महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का प्रारंभिक इतिहास

इतिहास में राजा महाराजा अपने सवारी तथा एक स्थान से दूसरे स्थान युद्ध करने या अन्य किसी भी गतिविधि में भाग लेने जाने के लिए अश्व , हाथी आदि का प्रयोग करते थे जब मेवाड़ में महाराणा प्रताप का शासन था तब एक गुजराती व्यापारी घोड़ों का व्यापार करने के लिए मेवाड़ रियासत में आया था उस व्यापारी के पास अफगान नस्ल तथा काठियावाड़ी नस्ल के उच्चतम घोड़े थे गुजराती व्यापारी ने अपने तीन घोड़े के बारे में बताया कि यह किसी भी युद्ध परिस्थिति में युद्ध कर सकते है तथा अपने स्वामी के आदेशों को भली-भांति समझते भी है गुजराती व्यापारी ने तीन घोड़े जिनके नाम चेतक , त्राटक और अटक था को दुर्ग में लेकर गया और महाराणा प्रताप के समक्ष उपस्थित हुआ



विभिन्न घोड़ों का परीक्षण तथा चेतक का चयन

मेवाड़ में महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक हो चुका था और वे मेवाड़ के महाराणा का पदभार संभाल रहे थे महाराणा प्रताप के राज्य अभिषेक के कुछ वर्षों बाद जब एक सैनिक ने महाराणा प्रताप तक खबर पहुंचाई की एक घोड़ों का व्यापारी आया है जो अपने घोड़ों को उच्च नस्ल तथा युद्ध की विभिन्न रणनीतियों से पारंगत बता रहा है  महाराणा प्रताप आदेश देते हैं कि उस घोड़ों के व्यापारी को दुर्ग में लेकर आए दुर्ग में प्रवेश करने के बाद  गुजराती व्यापारी अपने तीन 3 अश्व चेतक , त्राटक और अटक के बारे में बताता है और अटक को परीक्षण के लिए के लिए चुना जाता है अटक इन तीन घोड़ों में सबसे अधिक शक्तिशाली तथा रण कौशल में पारंगत घोड़ा था और अटक ने परीक्षण को अपने अर्जित ज्ञान से सफलतापूर्वक पास भी कर लिया परंतु इन परीक्षण में अटक बुरी तरीके से घायल भी हो चुका था क्योंकि परीक्षण में हर ऐसी परिस्थिति बनाई जाती है जो युद्ध में तथा संकटकाल में बनती है परंतु अटक ने इन सभी परिस्थितियों पर विजय पाने में सफल रहा लेकिन अत्यधिक घायल होने के कारण इलाज के दौरान अटक ने अपने प्राण त्याग दिए इसके बाद त्राटक तथा चेतक इन दोनों घोड़ों ने भी परीक्षण मे सफलता प्राप्त की और महाराणा प्रताप ने त्राटक को अपने छोटे भाई शक्ति सिंह को दे दिया और चेतक को अपने पास रख लिया चेतक नीले रंग का घोड़ा था इस कारण चेतक को नीलवर्ण भी कहा जाता है इतिहास में विभिन्न कवियों , इतिहासकारों तथा साहित्यकारों ने अपने लेख में चेतक के रंग रूप का बखूबी से वर्णन किया है राजस्थान के लोकगीतों में चेतक तथा महाराणा प्रताप के बारे में वर्णन मिलता है और " महाराणा प्रताप को नीले घोड़े रा असवार म्हारा मेवाड़ी सिरदार " कहकर भी संबोधित किया गया है चेतक 300 किलो से भी अधिक  वजन को उठाकर  युद्ध कर सकता था और हवा की रफ्तार सेे दौड़ सकता था क्योंकि महाराणा प्रताप  युद्ध भूमि में जाते वक्त अन्य योद्धाओं की तरह विभिन्न शरीर के भागों को सुरक्षा  प्रधान  करने वाले लोकायुक्त  कवच को धारण करते थे तथा उनके शारीरिक वजन को मिलाकर  यह वजन कहीं अधिक हो जाता था फिर भी  चेतक  युद्ध की रणनीतियां  तथा स्वामी भक्ति में इतना पारंगत था कि वह कैसी भी परिस्थिति में सचेत रहता था


हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का रण कौशल

18 जून 1576 को इतिहास में हल्दीघाटी का युद्ध हुआ था और इस युद्ध में महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक तथा मेवाड़ी योद्धाओं ने अपने दुश्मन सेना को पराजित किया था इसी युद्ध में  महाराणा प्रताप ने  चेतक पर बैठकर ही  बहलोल खान  को  घोड़े सहित  अपनी तलवार से दो हिस्सों में  काट दिया था हल्दीघाटी के युद्ध में चेतक को  हाथी की सूंड का एक कवच तथा उसके अन्य शरीर को भी कवच से ढका गया था इस युद्ध में जब महाराणा प्रताप ने चेतक को आदेश देकर मानसिंह के हाथी की तरफ आगे बढ़ाया तब चेतक ने अपने आगे के दोनों पांव को हाथी की सूंड पर रख दिया और महाराणा प्रताप ने अपने भाले से वार किया जिसमें मानसिंह घायल हो गए थे इसी युद्ध में चेतक की एक टांग हाथी के दातों पर लगी तलवार से घायल हो गई थी घायल चेतक ने अपनी चाल में किसी भी तरह का परिवर्तन नहीं किया जिससे  अपने स्वामी को किसी भी प्रकार की अनहोनी का अंदेशा ना हो और चेतक घायल अवस्था में ही युद्धध भूमि में डटा रहा जब युद्ध चल रहा था तब महाराणा प्रताप के गुरु राघवेंद्र को गुप्त चरों के माध्यम से खबर मिलती है कि उदयपुर पर मुगल सेना का नेतृत्व करते हुए कुंवर जगमाल ने आक्रमण कर दिया है तो इसके बाद गुरु राघवेंद्र तथा अन्य योद्धा सभी महाराणा प्रताप को हल्दीघाटी के मैदान से निकलने को मजबूर करते हैं और उदयपुर की सुरक्षा करने का निवेदन करते हैं इन सभी योद्धाओं तथा अपने गुरु के आदेशों का पालन करते हुए महाराणा प्रताप युद्ध मैदान से निकलकर उदयपुर की तरफ जाते हैं और उनके राज चिन्ह को झाला मन्ना धारण करते हैं और युद्ध को जारी रखते हैं परंतु जब महाराणा प्रताप हल्दीघाटी के मैदान से उदयपुर की तरह आगे बढ़ रहे थे तब मुगल सैनिकों ने उन्हें देख लिया और कुछ सैनिकों के पीछे जाने लगे फिर भी एक टांग से घायल चेतक हवा की रफ्तार से उदयपुर की तरफ भाग रहा था और शक्ति सिंह जो कि अपने बड़ेेेेे भाई महाराणा की सहायता करने आगेेे बढ़ते हैं और उन मुगल सैनिकों को मार गिरातेे हैं और दूसरी तरफ महाराणा प्रताप अपनेेे घोड़ पर बैठकर उदयपुर की तरफ जा रहे थे तब एक बरसाती नाला जो 25 फुट से भी अधिक  चोड़ा था को चेतक ने घायल होतेेे हुए भी एक लंबी छलांग लगाकर पार कर दिया और जब दूसरी तरफ पहुंचा तो वह बुरी तरीकेेेेेे घायल होकर वही बैठ गया था जब चेतक नीचेेे बैठ गया तब महाराणा प्रताप को अंदेशा हुआ तभी महाराणा प्रतााप देखते है कि उनका भाई शक्ति सिंह अपने अश्व बैठकर उनकी तरफ आ रहे हैं जब शक्ति सिंह महाराणा प्रताप के पास पहुंचते हैं तो  महाराणा प्रताप अपने घायल चेतक  घोड़े के पास बैठकर वैरागी हो रहे थे इसके बाद शक्ति सिंह महाराणा प्रताप से शमा याचना मांग कर उनकेेे पाव छूते हैं तभी महाराणा प्रताप  अपने भाई को गले लगा लेते हैं और उदयपुर पर जगमाल के आक्रमण की बात कहते हैं तभी शक्ति सिंह अपने घोड़े को महाराणा प्रताप  को देते हैं  और  कहते हैं कि आप मेवाड़ के गौरव हैं आप उदयपुर पहुंच कर राज परिवार तथा  जनता की रक्षा करें इसके बाद महाराणा प्रताप उदयपुर पहुंच कर राज परिवार तथा लोगों की रक्षा करते हैं

चेतक का समाधि स्थल 

चेतक की मृत्यु के बाद महाराणा प्रताप तथा उनके भाई शक्ति सिंह चेतक का अंतिम संस्कार विधि विधान के साथ करते हैं  वर्तमान समय में चेतक का स्मारक तथा उस का समाधि स्थल राजसमंद जिले में हल्दीघाटी गांव से कुछ दूरी पर स्थित बलीचा में है जहां पर चेतक ने अपने प्राण त्याग दिए थे चेतक का समाधि स्थल चेतक की पराक्रम तथा वीरता को दर्शाता है

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