आल्हा ऊदल का इतिहास|History of Alha Udal

आल्हा ऊदल का इतिहास|History of Alha Udal





52 युद्ध के महानायक योद्धा आल्हा ऊदल का इतिहास स्वर्णिम अक्षरों से लिखा गया है इस कारण इतिहासकारों ने इस समय को आल्हखंड की संज्ञा दी है यह वीर योद्धा महोबा राज्य के सेनानायक थे जिन्होंने महोबा राज्य की रक्षा के लिए हमेशा युद्ध किया और उनमें अपने राजा को विजय दिलाई थी इन वीर योद्धाओं को आज के समय में लोकगीतों के माध्यम से याद किया जाता है तथा इनकी वीरता भरी बातों को पीढ़ी दर पीढ़ी लोग अपने बच्चों को सुनाते हैं

आल्हा उदल का  प्रारंभिक इतिहास 


12 वीं शताब्दी में महोबा पर चंदेल वंश के शासक परवर्ती देव का शासन था परवर्ती देव के सेनापति दसराज थे जो बहुत ही वीर और शक्तिशाली सेनापति थे आल्हा ऊदल दसराज तथा माता देवल दे के पुत्र थे आल्हा का जन्म महोबा के छोटे से गांव में हुआ था तथा ऊदल का जन्म आल्हा के जन्म  के लगभग 12 वर्ष बाद हुआ था आल्हा ऊदल चंद्रवंशी क्षत्रिय बनाफर राजपूत योद्धा थे आल्हा  मां देवी  के उपासक थे  तथा उनकी  भक्ति श्रद्धा पूर्वक करते थे इस कारण  उन्हें मां देवी से अमर  रहने का  आशीर्वाद भी  प्राप्त हुआ था आल्हा तथा ऊदल ने बचपन से ही शास्त्र का ज्ञान प्राप्त किया था और अपने गुरु  गोरखनाथ से विभिन्न तरह की युद्ध पद्धतियां  तथा युद्ध करने की  तकनीकों से अवगत  हो चुके थे जिन्होंने अपने धर्म तथा संस्कृति की रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहते थे 12 वीं शताब्दी का समय राजपूत काल के अंतर्गत आता है जिसमें विभिन्न क्षेत्रों पर राजपूत वंश के शासकों का शासन था जब अजमेर के शासक का पदभार पृथ्वीराज चौहान ने संभाला तथा अपने शत्रुओं का दमन करते हुए अपने राज्य का विस्तार किया और दिल्ली को अपने अधिकार क्षेत्र में लेकर दिल्ली के सम्राट बन गए तब महोबा के शासक परवर्ती देव पर आक्रमण करने का निश्चय किया

आल्हा ऊदल का इतिहास|History of Alha Udal
आल्हा ऊदल का इतिहास

( आल्हा का विवाह नैनागढ़ की कन्या सोना से हुआ था तथा पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम इंदल रखा गया था जो बड़ा वीर तथा प्रतापी योद्धा कहलाया )


आल्हा-ऊदल और राजा परवर्ती देव चंदेल


महोबा राज्य में एक दिन किसी बात को लेकर राजा परवर्ती देव ने अपने सेनापति आल्हा तथा ऊदल को राज्य से निष्कासित कर दिया इसके बाद आल्हा तथा उदल दोनों ही वीर योद्धा राज्य से दूर चले जाते हैं और कन्नौज के शासक जयचंद की सेवा में चले जाते हैं कई महीने बीत गए परंतु आल्हा तथा उदल महोबा की तरफ नहीं लौटे और राजा परवर्ती देव को भी अपने राज्य की सुरक्षा की चिंता सता रही थी क्योंकि आल्हा तथा ऊदल की राज्य से चले जाने के बाद सैनिक शक्ति कमजोर होती जा रही थी और ऊपर से गुप्त चरों ने सूचना दी कि दिल्ली के सम्राट पृथ्वीराज चौहान महोबा पर आक्रमण करने वाले हैं तत्काल प्रभाव से राजा परवर्ती देव ने सेना नायकों को पत्र लिखा और इस पत्र में जिक्र किया कि दिल्ली के सम्राट पृथ्वीराज चौहान महोबा पर आक्रमण करेंगे इस पत्र को पढ़ने के बाद इन वीर योद्धाओं आल्हा तथा ऊदल वापस महोबा जाने का निश्चय किया और अपने राज्य की रक्षा के लिए राजा परवर्ती देव के समक्ष उपस्थित हुए इन वीर योद्धाओं को देखकर राजा परवर्ती देव अत्यधिक प्रसन्न हुए और अपनी सेना को युद्ध के लिए तैयार करने का आदेश देते हैं

( ऊदल के घोड़े का नाम बैदूल था )

आल्हा उदल द्वारा पृथ्वीराज चौहान से युद्ध 


युद्ध के आरंभ होते ही आल्हा अपनी सेना लेकर पृथ्वीराज चौहान की सेना पर टूट पड़ते हैं और पृथ्वीराज चौहान की सेना को भारी नुकसान पहुंचाते हैं परंतु पृथ्वीराज चौहान जो अपने तीर कमान से तीर चलाते हैं तो उदल अपने बड़े भाई आल्हा की रक्षा करते हुए उस तीर को अपने ऊपर ले लेते हैं जिससे ऊदल वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं इस युद्ध मे पृथ्वीराज चौहान के मित्र जयंत भी वीरगति को प्राप्त हो जाते ऊदल की मृत्यु से आल्हा क्रोधित होकर पृथ्वीराज चौहान की सेना पर टूट पड़ते हैं और अपने भाई का बदला लेने के लिए पृथ्वीराज चौहान के समक्ष पहुंच जाते हैं पृथ्वीराज चौहान तथा आल्हा के बीच भीषण युद्ध होता है तथा पृथ्वीराज चौहान बुरी तरह घायल हो जाते हैं परंतु आल्हा के गुरु गोरखनाथ के कहने पर आल्हा पृथ्वीराज चौहान से युद्ध नहीं करते हैं  और अपने छोटे भाई ऊदल के अवसान के बाद वे भक्ति भाव में लग जातेे हैं तथा युद्ध से सन्यास ले लेतेे हैं जगनेर केे राजा जगनिक ने एक ग्रंथ लिखा जिसका नाम  आल्हा खंड था इस ग्रंथ में राजा जगनिक ने आल्हा तथा उदल द्वारा लड़े गए युद्धों का वर्णन  किया है



मां शारदा का चमत्कारिक मंदिर जहां पर आज भी आल्हा तथा उनके द्वारा लड़े गए युद्ध के प्रमाण मौजूद हैं और लोगों की श्रद्धा के अनुसार वर्तमान समय में भी आल्हा मंदिर के कपाट बंद होने के बाद जब सुबह कपाट  दुबारा खोले जाते हैं तो आरती तथा पूजा पाठ के प्रमाण मिलते हैं और लोगों का कहना है कि आज भी आल्हा मां शारदा की पूजा अर्चना करते हैं इतिहास में ऐसे अमर योद्धा जिन्होंने अपने जीवन काल में जितने भी युद्ध लड़े उनमें विजय प्राप्त की थी

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