Jaiban Top History| जयबाण तोप का इतिहास

 Jaiban Top| जयबाण तोप

Jaiban Top History| जयबाण तोप का इतिहास
Jaiban Cannon

राजा महाराजा अपने राज्य तथा धर्म की रक्षा करने के लिए आक्रमणकारियों से लड़ने के लिए हथियार तथा औजार रखते थे जिससे वह राज्य तथा धर्म की रक्षा आक्रमणकारियों से कर सके यह हथियार आकार में छोटे तथा बड़े हुआ करते थे इस लेख में हम आपको एशिया तथा विश्व की सबसे बड़ी तथा ताकतवर तोप जयबाण तोप का इतिहास के बारे में विस्तार से अवगत करवाएंगे 


तोप की शुरुआत:-

तोप की शुरुआत अर्थात इसका निर्माण बहुत ही पुराने समय से होता आ रहा है सबसे पहले तोपों का निर्माण चीन में हुआ था जोकि आकार में छोटी और वजन में भी हल्की होती थी परंतु समय के साथ इसका आकार बड़ा और वजन भारी होता गया 1313 ईस्वी में यूरोप में तोपों के प्रमाण मिलते हैं और जब बाबर भारत पर आक्रमण करता है तब पानीपत की लड़ाई में 1526 ईस्वी में सर्वप्रथम तोप का प्रयोग करता है


जयबाण तोप जयपुर :-

जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने जयबाण तोप का निर्माण करवाया इसका निर्माण 1720 ईस्वी में अरावली की पहाड़ी पर स्थित जयगढ़ दुर्ग में करवाया था इस तोप के निर्माण के लिए जयगढ़ दुर्ग में ही कारखाना लगवाया गया और जयबाण तोप के साथ-साथ अन्य छोटे तोपो का भी निर्माण जयगढ़ दुर्ग में हुआ था


जयबाण तोप का प्रयोग किसी भी युद्ध में नहीं किया गया था क्योंकि इसका वजन तथा कार बहुत ही बड़ा है इसलिए इसको युद्ध भूमि में ले जाना उस समय बहुत ही कठिन था जब यह तोप पूरी तरीके से तैयार हो गई थी तब इसका प्रयोग एक बार किया गया था और जब इस तोप का गोला गिरा तो वहां पर एक बड़ा सा गड्ढा बन गया और आज यह गड्ढा एक तालाब का रूप ले रखा है जो उस गांव के लोगों की प्यास बुझाता है

( दशहरे के दिन हथियारों का पूजन होता है इसी दिन जयबाण तोप का भी पूजन किया जाता है )

जयबाण तोप की विशेषताएं :-

• जयबाण तोप का निर्माण मुगल बादशाह मोहम्मद शाह के समय जयपुर रियासत के राजा सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा करवाया गया था जयबाण तोप के बैरल की लंबाई 6.15 मीटर है अर्थात 20.2 फिट लंबाई है जयबाण तोप का वजन लगभग 500 किलोग्राम है जयबाण तोप चार पहियों पर खड़ी है जिसमें से दो पहिए तो बड़े बड़े आकार के हैं और दो पहिए छोटे आकार में है जो सहायता का कार्य करते हैं 

• जयबाण तोप के बैरल की नोक की परिधि 2.2 मीटर है और पीछे की तरफ यह परिधि बढ़कर 2.8 मीटर हो जाती है जयबाण तोप की बैरल की मोटाई अग्र भाग से पीछे की तरफ बढ़ती जाती है


• जयबाण तोप की बैरल पर आकृतियां उकेरी गई है इस की नोक पर फूल किया करते बनी हुई है बैरल पर अन्य आकृतियां भी बनी हुई है यह आकृतियां पक्षियों की है जिसमें मोर तथा बत्तख है जयबाण तोप की बैरल की नोक पर दो जोड़ीदार मोर की आकृतियां है तथा बैरल के पीछे की तरफ दो जोड़ीदार बत्तख की आकृतियां है

• जयबाण तोप की बैरल पर दो बहुत ही बड़ी बड़ी कड़ियां है जिसका प्रयोग जयबाण तोप को उठाने में किया जाता था जयबाण तोप की बैरल को ऊपर नीचे या अन्य किसी दिशा में घुमाने के लिए इसमें स्क्रू तथा पहियों का प्रयोग किया जाता था

• जयबाण तोप के निर्माण से अब तक एक बार ही गोला दागा गया है इस तोप को चलाने के लिए 100 किलोग्राम बारूद की जरूरत और 50 किलोग्राम के गोले की जरूरत होती है


जयबाण तोप से बना तालाब :-

जब जयबाण तोप बनकर तैयार हो गई थी तब इसका एक बार प्रयोग किया गया था जयबाण तोप का जब इस्तेमाल हुआ तो इसका गोला लगभग 35 किलोमीटर दूर जाकर गिरा और वहां पर एक बहुत बड़ा गड्ढा बन गया समय के साथ यह गड्ढा बारिश के पानी से भर गया और वर्तमान समय में एक बहुत बड़ा तालाब बन रखा है और इस तालाब के पानी का प्रयोग चाकसू गांव के लोग अपने दैनिक जीवन के क्रियाकलापों में करते हैं

( जयबाण तोप जयगढ़ दुर्ग के डूंगर दरवाजे पर रखी हुई है )
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